आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ धन निर्धन को देत सदाहीं । जो क�
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ धन निर्धन को देत सदाहीं । जो क�